वैदिक मंत्रो में गायत्री मंत्र को सब से महत्वपूर्ण और शक्तिशाली मंत्र माना गया है.
ऋषि विश्वामित्र द्वारा गायत्री मंत्र को ऋग्वेद में लिखा गया है.
ॐ भुर भुवः स्वः
तत्सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो योनः प्रचोदयात्
ऋग्वेद (10.16.3)
इस मंत्र का अर्थ और वैज्ञानिक विशलेषण इस प्रकार है.
ॐ भुर भुवः स्वः
भुर (पृथ्वी), भुव (सूर्य), स्वः (मिल्किवेव गेलेक्सी)
जब कोई पंखा 900RPM पर भी चलता है तब आवाज़ उत्पन करता है. वैसे ही 20KTIMES/SEC की अनंत गति से घूमते हुए ग्रह, सौरमंडल और गेलेक्सिस भी एक ध्वनि उत्पन करती है. ऋषि विश्वामित्र ने योग से ब्रह्मांड की इस ध्वनि को सुनने की शक्ति को अर्जित किया था. और ध्यान में रह कर इस ध्वनि को सुन कर इस ध्वनि को ॐ घोषित किया था. ऋषि विश्वामित्र का निष्कर्ष था की ॐ ध्वनि अनंत अनंत काल से ब्रह्मांड में व्याप्त है और यह ध्वनि निरंतर है. और ब्रह्मांड के रचयिता का ब्रह्मांड से संवाद का यह एक माध्यम है.
भगवद्गीता में श्री कृष्ण ने घोषित किया है की “ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म” अर्थात् जो निराकार इश्वर है उसे सिर्फ एक ॐ ध्वनि के द्वारा भी पूजा जा सकता है और ऐसा करने वाला इन्सान परम गति को प्राप्त करता है.
योग साधना करने वाले योगिओं ने इसे उद्गति नाद कहा है. जिसे समाधी अवस्था में जाने के लिए सुना जाता है. इसी लिए सभी मंत्रो के आगे (या आगे और पीछे) ॐ को लगाया जाता है.
तत्सवितुर्वरेण्यं
तत (ब्रह्मांड के रचयिता), सवितुर (एक तारा सूर्य) वरेण्यं (उपासना करना)
इसका अर्थ है की इस ब्रह्मांड के रचयिता जिसकी ध्वनि ॐ है उसकी हम पूजा करते है और जो अनंत तारे से आते प्रकाश तरह दीखता है.
भर्गो देवस्य धीमहि
भर्गो (प्रकाश), देवस्य (भगवान्), धीमहि (पूजा करना)
अर्थात् हमको इश्वर को प्रकाश के स्वरुप में पूजना चाहिये
धियो योनः प्रचोदयात्
धियो (ज्ञान) यो (जो कोई भी) न: (हमें) प्रचोदयात् (उचित रास्ते से)
इसका अर्थ है की जो हमें ज्ञान देता है या हमें ज्ञान प्राप्ति का उचित रास्ता दिखता है, वह इस्वर है.
इस तरह देखे तो, अनंत मिल्किवेव गेलेक्सी के भ्रमण से उत्सर्जित होने वाली शक्ति (Energy) इस सृष्टि में हर जगह व्याप्त है. यह मॉडर्न साइंस के काइनेटिक इनर्जी (गतित उर्जा) के सूत्र के हिसाब से सटीक है.
K.E. = ½mv2
वेदों के बहोत सरे मंत्रो में शक्तिशाली ॐ को मंत्र के आगे जोड़ा गया है. विश्व के अन्य बहोत सारे धर्मो में भी ॐ को कुछ बदलाव के साथ स्वीकार कर के अनुकूलित किया गया मालूम होता है.
आगे और द्रष्टिकोण को प्रस्तुत करता हूँ.
वेदों के अनुसार अलग अलग ७ लोक (या ग्रह) है जहाँ पर अस्तित्व है. और सभी ग्रह अगले वाले से आध्यात्मिक रूप से उन्नत है. वेदों में कहा गया है की आध्यात्मिक जाग्रति और विकास से हम उत्तरोत्तर लोक में जा सकते है और अंत में ब्रह्मांड में विलीन हो सकते है.
भगवान् बुध्ध के बहोत सारे शिक्षण में यह सात लोक को संदर्भित किया गया है. गायत्री मंत्र का जाप करने से हम दिव्य आध्यात्मिक प्रकाश और शक्ति को हम अपने शारीर के चक्रों में संचारित कर सकते है और इन चक्रों को अस्तित्व के आध्यात्मिक स्थानों (सात लोक) के साथ जोड़ सकते है.
गायत्री साधक अपने अंदर दिव्य शक्ति की उपस्थिति अनुभव करता है जिसमे अप्रचुर शक्ति और मन की शांति होती है. वेद कालीन ऋषिओ ने भारी मात्रा में अतिरिक्त संवेदी ऊर्जा (extrasensory energy) के सेतु जिसमे चक्र, उपचक्र, ग्रंथि, कोष, मटक, उपयतिका और नाडी को अंत: स्रावी ग्रंथियां, दिमाग के तंतु और नाड़ीग्रन्थि में अनुभव और प्रयोग किया है. ऐसा भी कहा गया है की नाडिओं और चक्रों के जागृत होने से धार्मिक प्रतिभा और अलौकिक क्षमता को बढाया जा सकता है.
आत्मज्ञान के विषय में वैज्ञानिकों, भौतिकविदों और आध्यात्मिक गुरुओ द्वारा इन पौराणिक दृष्टिकोण का अभ्यास और छानबीन (पुनः खोज) की जा रही है. गायत्री मंत्र की भौतिक ज्ञानक्षेत्र में अलौकिक असर गायत्री मंत्र के शब्द विन्यास (configuration) में छुपी हुई है. गायत्री मंत्र का पुनरावृत्ति उच्चारण शारीर में अचेतन शक्ति को उद्दीप्त करता है.
गायत्री मंत्र के पुनरावृत्ति उच्चारण से (बार बार बोलने से) जीभ, होंठ, स्वर रज्जु, तालू और आसपास के क्षेत्र पर पड़ता दबाव सूक्ष्म शरीर में एक कंपन (गूंज) पैदा करता है. गायत्री मंत्र का संगीत चक्रों और नाडिओं को उत्तेजित करता है और साधक के अंदर एक चुंबकीय शक्ति का संचार करता है जो ब्रह्मांड की गायत्री शक्ति को आकर्षित करता है.
मंत्र के बार बार बोलने पर उत्पन्न हुई यह चुम्बकीय शक्ति साधक के दिमाग को अलौकिक शक्ति के साथ जोड़ देती है. लम्बें समय तक गायत्री मंत्र का जप करने से शरीर और दिमाग पर इसकी महत्वपूर्ण असर दिखती है. हमारा दिमाग तेज़, प्रतिरक्षा प्रणाली (immune system) मजबूत और हमारा मन खुला बनता है. जब हमारे शक्ति केंद्र जैसे की चक्र और नाडी गायत्री मंत्र के कंपन से जाग्रत हुए है तब इसका सकारात्मक और उपचारात्मक असर हमारे जीवन में और हमारे प्राण में दीखता है.
जो साधक आध्या शक्ति गायत्री से अपने शरीर में सत, रज और तम का सामंजस्य (तालमेल) बना लेता है वह आसानी से आध्यात्मिक और आनंदित हो सकता है. गायत्री मंत्र का जप एक शुद्ध विज्ञान है. हम अपने प्रणम्य कोष को ब्रह्मांड के प्रणम्य कोष के साथ जोड़ कर हम हमरे चैतन्य को ब्रह्मांड के चैतन्य से जोड़ सकते है.
विचार, इच्चा और भावना यह प्राण तत्व् है जो आत्मा के ऊपर के तिन आवरण है. सूक्ष्म, कारण और स्थूल. सभी जीवो का अस्तित्व और चेतना प्राण तत्व के आभारी है.
पौराणिक भाषाओँ में कहा गया है की हमारा दिमाग हमारी चेतना है, मंत्र एक कंपन और मंत्र का फल पदार्थ है, अब हमें इसकेपीछे के विज्ञान को समजना है. ब्रह्मा ने पांच तत्वों
(पंचभूत) को बनाया. पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश (ether).
अणु घन, प्रवाही या वायु इन तीन पदार्थो में आकार लेता है. प्रकृति के विशाल प्रसार में नदियाँ, पहाड़, पृथ्वी इ… यह सभी पांच तत्वों से ही निर्मित है. हमारा भौतिक शरीर भी इन्ही पांच तत्वों से बना है.
दोनों ही रचनाओ में (जड़ और चेतन) कुछ गतिविधि है. चैतन्य में भावना, आवेश, प्रेरणा और जड़ में उर्जा के अनुसार आकर, कलर स्वरुप बनना या नष्ट होना.
जड़ का आधार अणु है और चैतन्य का आधार चेतना है. दोनों ही स्वरुप सूक्ष्म और शक्तिशाली है. दोनों ही अनाश्य और अपना स्वरुप बदलने वाले है. जड़ और चेतन के उद्भव में ब्रह्मा की चेतन शक्ति और पदार्थ शक्ति है. शुरू में, इच्चा की ज़रूरत थी जिसके बिना चैतन्य का उद्भव असंभव था.
चैतन्य शक्ति की अनुपस्थिति में पदार्थ का ज्ञान किसी को प्राप्त नहीं होना था. पदार्थ की उपयोगिता चैतन्य शक्ति के प्रगट होने के लिए ज़रूरी है. इसी लिए दिमाग में सीधे प्रवेश करे इस तरह से हमें गायत्री मंत्र बोलना चाहिए.
इस आर्टिकल के मूल में आभास मल्दाहियर जी है जिन्हों ने अपने ट्विटर पर एक के बाद एक करीब ३० ट्विट के ज़रिये यह बात लिखी है.
https://twitter.com/Aabhas24/status/1075449850559262720
ज्यादा से ज्यादा लोगो तक यह जानकारी पहोचे इस हेतु से मैंने उनके ट्विट का भावानुवाद करने की कोशिश की है. मूल गुजरती होने की वजह से अगर कोई भाषाकिय त्रुटी है तो उसे इगनोर कर के मूल भाव को पढ़ा जाये ऐसी मेरी प्रार्थना है.
Aabhas K Maldahiyar के ट्वीट का हिंदी अनुवाद
What a depth ! Super Devine….
Hari Om!
ૐ