“सन्यासी”, “साधु”, “संत”, “ऋषि” और “महर्षि” ये सारे शब्द हमे हमारी संस्कृति और सांस्कृतिक विरासत पर गर्व महसूस करवाता है। मिडिया ने इन शब्दों में से कुछ शब्दों को “गाली” जैसा बना दिया है। बाबा राम रहीम से ले कर के आसाराम बापू तक सभी ने इन शब्दों की गरिमा को ठेस पहुचाई है। और रही सही कसर मिडिया ने पूरी कर दी है।
इन बाबा ओ को “बाबा” बनाया किसने है? हमने? बिलकुल नहीं। तो फिर किसने?
देखिये, आस्था रखना, संत समागम करना और संतो के पास जा कर के समाज का काम करना इसमें कोई बुराई नहीं है। हम सब को करना ही चाहिए। तो फिर हमसे गलती हुई कहा? दरअसल गलती हुई नहीं है, गलती करवाई गयी है।
जो आस्तिक है वो किसी ना किसी सुप्रीम पावर (भगवान) में विश्वास करते है। और हमारे यहाँ तो ३३ करोड़ देवी-देवता है। लेकिन होता क्या है, हमारी शिक्षा प्रणाली हमें भगवान के प्रति आस्था न करने के १००० कारण देती है। स्कुल में विज्ञान के शिक्षक ऐसी ऐसी दलीलें देते है जिससे हमारी आस्था डगमगा जाती है। यहाँ तक की रामायण और महाभारत को सिर्फ एक “महा-काव्य” बता कर भगवान (राम और कृष्णा) की हमारी कल्पना के ऊपर ही सवालिया निशान लगा दिया है। ऐसे में जिसने अच्छी शिक्षा ग्रहण कर ली वो उस अंतिम कक्षा का इलेक्ट्रोन बन जाता है जो दुसरे से बहुत जल्दी आकर्षित को कर के हिन्दू भगवान के अस्तित्व को सिरे से ख़ारिज कर देता है और धीरे धीरे नास्तिक भी बन जाता है। और हमारी शिक्षा प्रणाली बनाने वाला लार्ड मेकेलो यही चाहता था। और इसके विपरीत, गाँवो में, जहाँ कम लोग शिक्षित है, जो लार्ड मेकेलो की शिक्षा का शिकार नहीं हुए है और आज तक colonised (अंगेजो के मानसिक गुलाम) नहीं हुए है, वहां पर भगवान् के प्रति आस्था ज्यादा होती है।
अब असली खेल यहाँ से शुरू होता है।
१३० करोड़ के भारत की तक़रीबन ७२% जनसँख्या गाँवो में रहती है। यानि करीबन ९४ करोड़ लोग। इन में से जयादातर हिन्दू। इन हिन्दू ओ का कन्वर्ज़न इसाई मिशनरीज का मुख्य लक्ष्य है। इसाई मिशनरी को फंड और बाकि संसाधनों की कोई कमी नहीं है क्यों की पुरे विश्व से इनको पैसा मिलता है। जहाँ पर सरकार और बाकि NGO नहीं पहोच सके ऐसे ऐसे स्टेट, जिले, तहसील और गाँव को टारगेट बना कर वहां हॉस्पिटल तो कहीं पर स्कुल के बहाने यह लोग हमें उनके पास बुलाते है और फिर सिस्टमेटिक ब्रेन वाशिंग के ज़रिये हमारी आस्था को बदलने की कोशिश में लग जाते है। और वह बहोत जगह पर सफल भी हुए ही है इन में कोई दो राइ नहीं है। कन्वर्ज़न (फैथ ट्रांसफर) के क्या नुकसान है उसके बारे में फिर कभी बात करेंगे लेकिन कन्वर्ज़न रोकना बहुत ज़रूरी है।
हमारे हिन्दू संत गाँव गाँव में अपने कार्यक्रमों के माध्यम से गाँव वालो की श्रध्दा पे वार नहीं होने देते और गाँव के लोगो को सनातन धर्म से जोड़े रखते है। इस बात को समज कर इन मिशनरीज (और उनके सहयोगी लोग/संस्थाए/मिडिया/इंटेलेक्चुअल) ने अपनी व्यूहरचना बदल दी।
षड़यंत्र क्या है?
- हिन्दू समाज में से (पैदाइश छिछोरे) लोगो का चयन करना जो लोगो के ऊपर प्रभाव पैदा कर सकते है।
- फिर उनको एक सोची समजी रणनीति के तहत फण्ड उपलब्ध करना।
- उनके प्रभाव का मिडिया में खूब प्रचार करना और उनको समाज का हीरो बना कर पेश करना।
- उनके समागम में खूब भीड़ आने लगे ऐसा प्रबंध करना।
आपको लगेगा की इसमें साजिश क्या है? यह तो अछि बात है। नहीं। तो ऐसा बिलकुल नहीं है।
अच्छा, मुझे बताइए के क्या हमने और आप ने राहुल गाँधी और नरेन्द्र मोदी को चुना था? मतलब क्या हम और आप चुनते है की कौन हमारे लीडर होंगे? कौन हमारे राष्ट्रपति होंगे? कौन हमारे देश की टीम में होगा? कुछ लोग जैसे ये सारी बाते तय करते है ठीक उसी तरह देश में कौन बाबा फेमस होगा यह भी कुछ ही लोग तय करते है। और उनको फेमस बनाने के लिए पूरा एजेंडा चलाया जाता है। मिडिया बोलने लगती है, पेपर में आर्टिकल आता है, ब्लॉग में बात शुरू होती है, फिर इन सारी बातो का रेफ़रन्स दे कर JNU जैसे विश्वविद्यालयो में कार्यक्रम होते है, देश में चर्चा होती है इ….
एक तो जिनको बड़ा बनाया गया है वह इन पद के लायक थे के नहीं हम नहीं जानते। उनको तो हमारे ऊपर थोपा जाता है। अब होता क्या है, की इन बाबाओ के हाथो गलती करवा कर फिर उन गलतीओ को इन्ही मिडिया में खूब चलाने से इन बाबाओ के प्रति समाज में आदर समाप्त करवा दिया जाता है। फिर जिस जिस क्षेत्रो में इन क्षेत्रो में इन बाबाओ का प्रभाव बना होता है उन सभी स्थानों पर एक बहोत बड़ा “श्रध्दा का वेक्यूम” बनता है। और फिर इसी समय का फायदा उठा कर के मिशनरीज़ अपने काम में जुट जाती है। और हमारे भोले गाँव वाले लोग आसानी से कन्वर्ट हो जाते है। अगर आप समजते है की यह कोई एक दो साल का आयोजन है तो ऐसा बिलकुल मत मानना, यह लोग १००-१०० साल का प्लानिंग करते है।
दूसरी बात यह, की जिनको मिशनरी ने बड़ा नहीं किया है ऐसे संतो के पीछे मिशनरी की टीम लगी रहती होंगी और जैसे सेना में “हनी ट्रेप” होता है ऐसे ही इनके पीछे बहोत सारी “अप्सराओ” को छोड़ दिया जाता होगा। कहीं न कही कोई न कोई तो गलती करेगा ही करेगा। फिर इन्ही गलतीओ को हथियार बना कर हिन्दू समाज के ऊपर हमला करने के लिए उपयोग में लिया जाता है।
देखिये में साधू संत के दुर्व्यवहार भरे आचरण का पक्ष नहीं लेता, ऐसा होना ही नहीं चाहिए। लेकिन वह भी तो मनुष्य है, और कोई अगर आपके पीछे पड़ जाता है तो फिर कही न कही तो आप फसोगे। एक फिल्म का डायलोग है “तुम्हे बार बार लकी रहना होगा और मुझे सिर्फ एक बार”। ठीक इसी तरह हमें भी बार बार, हर बार उनके ऐसे षड्यंत्रों में लकी रहना होगा, उनको समजना होगा, उनका काउंटर करना होगा। तभी जा कर के हम हमारे समाज को एक जुट रख पाएंगे। नहीं तो जैसे हम गुलाम थे वैसे ही फिर से गुलाम बनने में हमें ज्यादा देर नहीं लगेगी और देश अनेक टुकड़ों में बात जायेगा।
चलिए अगर आपको मेरे विचार वास्तविकता से दूर लगे तो आपको बता दूँ की पंजाब के जिन १२ जिले में बाबा राम रहीम का वर्चस्व था उन १२ जिलो में पिछले १० सालो में एक भी चर्च का निर्माण नहीं हुआ है। ठीक इसी तरह गुजरात के बहोत सरे गाँव में आसाराम का प्रभाव है। अब में और आप साथ में है, सन २०२८ में देखते है की उन जिले और गाँव में इसाई जनसँख्या और चर्च की संख्या कितनी हुई है। फिर शायद आप मुझसे सहमत होंगे। में १० साल तक आपकी अप्रूवल का इंतजार करूँगा।
कन्वर्ज़न के लिए कैसे कैसे पैंतरे किये जाते है वह जानने के लिए फेसबुक की यह पोस्ट आपको ज़रूर देखनी चाहिए।
Hmmm…