हमारे रीति रिवाज हमारे जीवन का हिस्सा है। हम सब इन रिवाजों को अपने अपने नज़रिए से देखते है। किसी के लिए यह एक यह एक आस्था का विषय है तो किसी के लिए सिर्फ एक ढोंग। लेकिन किसी ने इन रिवाजों को सही तरीके से जानने का कष्ट किये बिना ही अपना अपना अभिप्राय बना लिया है। कोई इसे धर्म के साथ जोड़ कर देखता है तो कोई संस्कृति तो कोई इसे पुराने खयाल मान कर इसे सिरे से ख़ारिज कर देता है
“में इन सब रिवाज़ो में नही मानता।” यह भी एक प्रोग्रेसिव दिखावे का पैमाना माना जाता है। और ऐसे लोग जो कोई भी इन रिवाज़ो को मानते है उनके प्रति घृणा की भावना से देख कर उनका हँसी मज़ाक करते हुए देखे गए है।
हमे हमारी परंपराओं पर गर्व होना ही चाहिए। और अगर हमारी परंपरा में कालानुकूल बदलाव की आवश्यकता दिखे तो हमे उचित बदलाव भी करने ही चाहिए। यही तो हिंदुत्व है। एक “ओपन सोर्स प्लेटफॉर्म” जिसने सभी तरफ से अच्छे विचारों को अपने मे सम्मिलित किया है।
हिंदुत्व गूगल प्ले स्टोर की तरह है। सोचियेगा ज़रूर।
हिन्दू विवाह में और हिन्दू संस्कृति में ही कह लीजिए “सात फेरों” का बहोत महत्व है। सात फेरे का बंधन हमारे लिए सब से ऊंचा है। यह किसी एक व्यक्ति के दूसरे पर अधिकार की बात नही है। लेकिन दो लोगों का अपने आने वाले समय मे साथ रहने का वचन है, चाहे परिस्थितियां कुछ भी हो जाये।
लोगों से पूछेंगे की सात फेरों का क्या महत्व है और सात ही फेरें क्यो लेते है तो लोग अपने अपने ज्ञान और नज़रिए से उसका उत्तर देंगे। कोई कहेगा सात जन्मों का रिश्ता है इस लिए सात फेरे तो कोई कहेगा कि दुनिया मे सात अंक महत्वपूर्ण है जैसे सात समंदर इत्यादि… अपनी अपनी सोच के हिसाब से सारे लोग सही हो सकते है। पर एक चीज़ जो इन सारी दलीलों में देखने को नही मिलती यह ये की हिन्दू धर्म ज्ञान का धर्म है और वह ज्ञान को छोटी छोटी चीजों में मिला कर जीवन का हिस्सा बना कर बैठा है। जैसे कि पीपल का पेड़ रात को भी ऑक्सीजन देता है तो पीपल के पेड़ को भगवान का स्थान दे कर उसकी पूजा करेगा। ताकि कोई पीपल का पेड़ काटे नही। कितना एनवायरनमेंट फ्रेंडली!!!
इस तरह सारे संस्कर, सारे रिवाजों के पीछे कोई न कोई ज्ञान है। फिर चाहे वह गणित हो, विज्ञान हो या एस्ट्रोनॉमी।
विवाह के मंडप में अग्नि की चारो और एक चक्कर काटने को एक फेरा कहते है। यह आकृति में देखे तो गोल बनता है। एक गोलाकार 360° का होता है। और 1 से 9 तक मे केवल 7 ही एक ऐसा अंक है जिससे 360 को पूर्णाक में बंटा नही जा सकता। विवाह के बाद पति-पत्नी कभी भी एक दूसरे से दूर न हो, दोनों के बीच मे कोई दूरी न हो, कोई उन्हें बाट न सके यही तो तात्पर्य है। विवाह के बंधन में ऐसे बंधेगे की कोई हम को बांट नही सकेगा।
इसे कहते है कि गणित और विज्ञान को जीना। ज्ञान को अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बन कर प्रकृति से ले कर ब्रह्मांड को अपने अंदर सम्मिलित करना। अपने हर एक कार्य मे प्रकृति और रचयिता को याद करना और उनके प्रति आभारी रहना।
दक्षिण भारत मे विवाह की रात को सप्तर्षि में अरुंधति और वशिष्ट तारों को देखने का एक रिवाज़ है। उसके पीछे भी एक कारण है। उसके बारे में किसी दिन लिखूंगा। आप भी अपने तरीके से इसके पीछे का विज्ञान निकालिये।
इसके अलावा भी इस परिपेक्ष्य में कोई कारण आपके ध्यान में है तो नीचे कमेंट में ज़रूर लिखिए
किसी धर्म में सिर्फ 4 फेरे लिए जाते है उसके बारे में आपका क्या कहना है?
दूसरा कोई धर्म 4 फेरे ले या 40। उनका अपना ही तर्क होगा। लेकिन जहां तक मेरी समझ है, हिन्दू शाश्त्रो के अनुसार हिन्दू धर्म के विवाह में 7 फेरों की ही बात है। फिर लोगों ने अपने अपने प्रदेश के अनुसार इस विधि में थोड़ा बदलाव किया हो सकता है।
Arya samaj aur gurudwara me jitne marriage hote hai usme 7 phere dekhe gaye hai majority. Baki sabhi hindu marriage me 4 phere hi liye jate hai. Pehle 3 phere me pati aage aur last 1 phere me patni aage rahti hai.
Sahi hai. Isi liye ise Sapt Padi kehte hai.